Friday, 16 March 2018

HISTORY OF BINSAR , ALMORA बिनसर का इतिहास , अल्मोड़ा..

HISTORY OF BINSAR , ALMORA बिनसर का इतिहास , अल्मोड़ा..

बिनसर कुमाउं के हिमालय इलाके के सबसे खूबसूरत स्थानों में से एक है | यह नैनीताल से महज 95 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है | इस जगह की ऊँचाई समुन्द्र तल से 2420 मीटर है | हिमालय का सुंदर , खूबसूरत , मनमोहक नज़ारा या दृश्य इस स्थान से देखने को मिलता है शायद वो कुमाउं में कही और नहीं मिल सकता है | चौखंबा, पंचचुली, नंददेवी, नंदा कोट और केदारनाथ जैसे प्रमुख चोटियों के दर्शन भी इस स्थान से स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं ।

FRIENDS VISIT IN BINSAR, ALMORA

वन्यजीव अभयारण्य के परिसर में शून्य बिंदु है , जहां से केदारनाथ, शिवलिंग, त्रिशूल और नंददेवी को देखने के लिए 300 किलोमीटर की दूरी पर दिख सकते हैं।49.59 वर्ग किलोमीटर में फैला , बिनसर विभिन्न प्रकार के कस्तूरी हिरण , गोरा , तेंदुए, जंगली बिल्लियां, काले भालू , पाइन मार्टेंन्स, लंगर्स, लोमड़ियों, बार्किंग हिरण, उड़ान गिलहरी, और चींगियां का घर है।
इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के पक्षियों जैसे कि कठफोड़वा, ईगल्स, मोल और पैराकैट्स देखे जाते है । वास्तव में, बिनसर में 200 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं।

Wednesday, 14 March 2018

पाताल भुवनेश्वर का इतिहास और मान्यताये ! HISTORY AND BELIEFS OF PATAAL BHUVANESHWER TEMPLE

           पाताल भुवनेश्वर का इतिहास और मान्यताये !            HISTORY AND BELIEFS OF PATAAL                   BHUVANESHWER TEMPLE
पाताल भुवनेश्वर मंदिर पिथौरागढ़ जनपद उत्तराखंड राज्य का प्रमुख पर्यटक केन्द्र है।
उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के प्रसिद्ध नगर अल्मोड़ा से शेराघाट होते हुए 160 किलोमीटर की दूरी तय कर पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट में स्थित है |पाताल भुवनेश्वर देवदार के घने जंगलों के बीच अनेक भूमिगत गुफ़ाओं का संग्रह है | जिसमें से एक बड़ी गुफ़ा के अंदर शंकर जी का मंदिर स्थापित है । यह संपूर्ण परिसर 2007 से भारतीय पुरातत्व विभागद्वारा अपने कब्जे में लिया गया है |
पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा किसी आश्चर्य से कम नहीं है।यह गुफा प्रवेश द्वार से 160 मीटर लंबी और 90 फीट गहरी है
पाताल भुवनेश्वर का पौराणिक इतिहास
पुराणों के मुताबिक पाताल भुवनेश्वर के अलावा कोई ऐसा स्थान नहीं है, जहां एकसाथ चारों धाम के दर्शन होते हों। यह पवित्र व रहस्यमयी गुफा अपने आप में सदियों का इतिहास समेटे हुए है। मान्यता है कि इस गुफा में 33 करोड़ देवी-देवताओं ने अपना निवास स्थान बना रखा है।
पुराणों मे लिखा है कि त्रेता युग में सबसे पहले इस गुफा को राजा ऋतूपूर्ण ने देखा था , द्वारपार युग में पांडवो ने यहः शिवजी भगवान् के साथ चौपाड़ खेला था और कलयुग में जगत गुरु शंकराचार्य का 722 ई के आसपास इस गुफा से साक्षत्कार हुआ तो उन्होंने यहः ताम्बे का एक शिवलिंग स्थापित किया | इसके बाद जाकर कही चंद राजाओ ने इस गुफा को खोजा |

Values and Features of Patal Bhuvaneshwer

पाताल भुवनेश्वर गुफा के अन्दर भगवान गणेश जी का मस्तक है.
हिंदू धर्म में भगवान गणेशजी को प्रथम पूज्य माना गया है। गणेशजी के जन्म के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव ने क्रोध में  गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया था, बाद में माता पार्वतीजी के कहने पर भगवान गणेश को हाथी का मस्तक लगाया गया था, लेकिन जो मस्तक शरीर से अलग किया गया, माना जाता है कि वह मस्तक भगवान शिवजी ने पाताल भुवानेश्व गुफा में रखा है |पाताल भुवनेश्वर की गुफा में भगवान गणेश कटे ‍‍शिलारूपी मूर्ति के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल के रूप की एक चट्टान है।
इससे ब्रह्मकमल से पानी भगवान गणेश के शिलारूपी मस्तक पर दिव्य बूंद टपकती है। मुख्य बूंद आदिगणेश के मुख में गिरती हुई दिखाई देती है।
Friends One more important History in Pataal Bhuvneshwer.
इस गुफाओं में चारों युगों के प्रतीक रूप में चार पत्थर स्थापित हैं।
इनमें से एक पत्थर जिसे कलियुग का प्रतीक माना जाता है, वह धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। यह माना जाता है कि जिस दिन यह कलियुग का प्रतीक पत्थर दीवार से टकरा जायेगा उस दिन कलियुग का अंत हो जाएगा।

पाताल भुवनेश्वर की मान्यताये
इस गुफा के अंदर केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के भी दर्शन होते हैं। बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिलारूप मूर्तियां हैं | जिनमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश तथा गरूड़ शामिल हैं। तक्षक नाग की आकृति भी गुफा में बनी चट्टान में नजर आती है। इस पंचायत के ऊपर बाबा अमरनाथ की गुफा है तथा पत्थर की बड़ी-बड़ी जटाएं फैली हुई हैं। इसी गुफा में कालभैरव की जीभ के दर्शन होते हैं। इसके बारे में मान्यता है कि मनुष्य कालभैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

जागेश्वर मंदिर का इतिहास ! (HISTORY OF JAGESHWER TEMPLE.

जागेश्वर मंदिर का इतिहास ! (HISTORY OF JAGESHWER TEMPLE.


उत्तराखंड के प्रमुख देवस्थालो में “जागेश्वर धाम या मंदिर” प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है | यह उत्तराखंड का सबसे बड़ा मंदिर समूह है | यह मंदिर कुमाउं मंडल के अल्मोड़ा जिले से 38 किलोमीटर की दुरी पर देवदार के जंगलो के बीच में स्थित है | जागेश्वर को उत्तराखंड का “पाँचवा धाम” भी कहा जाता है | जागेश्वर मंदिर में 125 मंदिरों का समूह है | जिसमे 4-5 मंदिर प्रमुख है जिनमे विधि के अनुसार पूजा होती है | जागेश्वर धाम मे सारे मंदिर समूह केदारनाथ शैली से निर्मित हैं | जागेश्वर अपनी वास्तुकला के लिए काफी विख्यात है। बड़े-बड़े पत्थरों से निर्मित ये विशाल मंदिर बहुत ही सुन्दर हैं।

HISTORY OF JAGESHWER TEMPLE , ALMORA.

जागेश्वर भगवान सदाशिव के बारह ज्योतिर्लिगो में से एक है । यह ज्योतिलिंग “आठवा” ज्योतिलिंग माना जाता है | इसे “योगेश्वर” के नाम से भी जाना जाता है। ऋगवेद में ‘नागेशं दारुकावने” के नाम से इसका उल्लेख मिलता है। महाभारत में भी इसका वर्णन है । जागेश्वर के इतिहास के अनुसार उत्तरभारत में गुप्त साम्राज्य के दौरान हिमालय की पहाडियों के कुमाउं क्षेत्र में कत्युरीराजा था | जागेश्वर मंदिर का निर्माण भी उसी काल में हुआ | इसी वजह से मंदिरों में गुप्त साम्राज्य की झलक दिखाई देती है | मंदिर के निर्माण की अवधि को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा तीन कालो में बाटा गया है “कत्युरीकाल , उत्तर कत्युरिकाल एवम् चंद्रकाल” | अपनी अनोखी कलाकृति से इन साहसी राजाओं ने देवदार के घने जंगल के मध्य बने जागेश्वर मंदिर का ही नहीं बल्कि अल्मोड़ा जिले में 400 सौ से अधिक मंदिरों का निर्माण किया है |

प्राचीन मान्यता In जागेश्वर मंदिर.....

प्राचीन मान्यता के अनुसार जागेश्वर धाम भगवान शिव की तपस्थली है | यहाँ नव दुर्गा ,सूर्य, हमुमान जी, कालिका, कालेश्वर प्रमुख हैं | हर वर्ष श्रावण मास में पूरे महीने जागेश्वर धाम में पर्व चलता है । पूरे देश से श्रद्धालु इस धाम के दर्शन के लिए आते है | इस स्थान में कर्मकांड, जप, पार्थिव पूजन आदि चलता है । यहाँ विदेशी पर्यटक भी खूब आते हैं । जागेश्वर मंदिर में हिन्दुओं के सभी बड़े देवी-देवताओं के मंदिर हैं । दो मंदिर विशेष हैं पहला “शिव” और दूसरा शिव के “महामृत्युंजय रूप” का । महामृत्युंजय में जप आदि करने से मृत्यु तुल्य कष्ट भी टल जाता है । 8 वी ओर 10 वी शताब्दी मे निर्मित इस मंदिर समूहों का निर्माण कत्यूरी राजाओ ने करवाया था परन्तु लोग मानते हैं कि मंदिर को पांडवों ने बनवाया था। लेकिन इतिहासकार मानते हैं कि इन्हें कत्यूरी और चंद शासकों ने बनवाया था ।









कसार देवी मंदिर का इतिहास एवम् मान्यताये ! (HISTORY AND BELIEFS OF KASAR DEVI TEMPLE , ALMORA)

कसार देवी मंदिर का इतिहास !
HISTORY OF KASAAR DEVI TEMPLE.

शक्ति के आलोकिक रूप का प्रत्यक्ष दर्शन उत्तराखंड देवभूमि में होता है |उत्तराखंड राज्य अल्मोड़ा जिले के निकट “कसार देवी” एक गाँव है | जो अल्मोड़ा क्षेत्र से 8 km की दुरी पर काषय (कश्यप) पर्वत में स्थित है | यह स्थान “कसार देवी मंदिर” के कारण प्रसिद्ध है | यह मंदिर, दूसरी शताब्दी के समय का है । 

उत्तराखंड के अल्मोडा जिले में मौजूद माँ कसार देवी की शक्तियों का एहसास इस स्थान के कड़-कड़ में होता है | अल्मोड़ा बागेश्वर हाईवे पर“कसार” नामक गांव में स्थित ये मंदिर कश्यप पहाड़ी की चोटी पर एक गुफानुमा जगह पर बना हुआ है |कसार देवी मंदिर में माँ दुर्गा साक्षात प्रकट हुयी थी | मंदिर में माँ दुर्गा के आठ रूपों में से एक रूप “देवी कात्यायनी”की पूजा की जाती है |

Image result for kasar devi temple

इस स्थान में ढाई हज़ार साल पहले “माँ दुर्गा” ने शुम्भ-निशुम्भ नाम के दो राक्षसों का वध करने के लिए “देवी कात्यायनी” का रूप धारण किया था | 
माँ दुर्गा ने देवी कात्यायनी का रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया था | तब से यह स्थान विशेष माना जाता है | स्थानीय लोगों की माने तो दूसरी शताब्दी में बना यह मंदिर 1970 से 1980 की शुरुआत तक डच संन्यासियों का घर हुआ करता था। यह मंदिर हवाबाघ की सुरम्य घाटी में स्थित है ।
कहते है कि स्वामी विवेकानंद 1890 में ध्यान के लिए कुछ महीनो के लिए इस स्थान में आये थे | अल्मोड़ा से करीब 22 km दूर काकडीघाट में उन्हें विशेष ज्ञान की अनुभूति हुई थी | इसी तरह बोद्ध गुरु “लामा अन्ग्रिका गोविंदा” ने गुफा में रहकर विशेष साधना करी थी |

BELIEFS OF KASAR DEVI TEMPLE ,

आस्था , श्रधा , विश्वास और मंदिर आदि का बहुत ही गहरा सम्बन्ध है | क्यूंकि यदि व्यक्ति के मन में आस्था , श्रधा न हो तो मंदिर में रखी गयी मूर्ति भी उसके लिए पत्थर के समान लगती है |
मंदिर में जाने से कोई भी व्यक्ति कभी भी खाली हाथ नहीं लौटता है |
कसार देवी मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहाँ आने वाले भक्तो की हर मनोकामना अतिशीघ्र पूर्ण हो जाती है | 

कसार देवी मंदिर “चुम्बकीय”

यह जगह अद्वितीय और चुंबकीय शक्ति का केंद्र भी है। नासा के वैज्ञानिक चुम्बकीय रूप से इस जगह के चार्ज होने के कारण और प्रभावों पर जांच कर रहे है | डॉक्टर अजय भट्ट का कहना है कि यह पूरा क्षेत्र “वैन ऐलन बेल्ट” है | इस जगह में धरती के अन्दर विशाल चुम्बकीय पिंड है | इस पिंड में विद्युतीय चार्ज कणों की परत होती है | जिसे रेडिएशन भी कहते है |
यह वह पवित्र स्थान है , जहां भारत का प्रत्येक सच्चा धर्मालु व्यक्ति अपने जीवन का अंतिम काल बिताने को इच्छुक रहता है। अनूठी मानसिक शांति मिलने के कारण यहां देश-विदेश से कई पर्यटक
आते हैं ।

Tuesday, 13 March 2018

चितई गोलू देवता मंदिर का इतिहास और मान्यताये , अल्मोड़ा (HISTORY AND BELIEFS OF CHITAI GOLU DEVTA TEMPLE )


Image result for chitai golu devta temple

जय चितई गोलू देवता मंदिर का इतिहास और मान्यताये ,अल्मोड़ा ....

जिला मुख्यालय अल्मोड़ा से आठ किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ हाईवे पर न्याय के देवता कहे जाने वाले गोलू देवता का मंदिर स्थित है, इसे चितई ग्वेल भी कहा जाता है | सड़क से चंद कदमों की दूरी पर ही एक ऊंचे तप्पड़ में गोलू देवता का भव्य मंदिर बना हुआ है। मंदिर के अन्दर घोड़े में सवार और धनुष बाण लिए गोलू देवता की प्रतिमा है।

उत्तराखंड के देव-दरबार महज देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना, वरदान के लिए ही नहीं अपितु न्याय के लिए भी जाने जाते हैं | यह मंदिर कुमाऊं क्षेत्र के पौराणिक भगवान और शिव के अवतार गोलू देवता को समिर्पत है ।
मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण चंद वंश के एक सेनापति ने 12वीं शताब्दी में करवाया था।.
एक अन्य कहानी के मुताबिक गोलू देवता चंद राजा, बाज बहादुर ( 1638-1678 ) की सेना के एक जनरल थे और किसी युद्ध में वीरता प्रदर्शित करते हुए उनकी मृत्यु हो गई थी। उनके सम्मान में ही अल्मोड़ा में चितई मंदिर की स्‍थापना की गई।पहाड़ी पर बसा यह मंदिर चीड़ और मिमोसा के घने जंगलों से घिरा हुआ है। हर साल भारी संख्या में श्रद्धालु यहां पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं।
 और फ्रेंड्स एक दिलचस्प बात.
लोगों को मंदिरों में जाकर अपनी मुरादें मांगते देखा होगा | लेकिन उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित गोलू देवता के मंदिर में केवल चिट्ठी भेजने से ही मुराद पूरी हो जाती है। मूल मंदिर के निर्माण के संबंध में हालांकि कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं | परन्तु पुजारियों के अनुसार 19वीं सदी के पहले दशक में इसका निर्माण हुआ था।
इतना ही नहीं गोलू देवता लोगों को तुरंत न्याय दिलाने के लिए भी प्रसिद्ध हैं। इस‌ कारण गोलू देवता को “न्याय का देवता” भी कहा जाता है।

Best Holiday trip in Uttrakhand Almora.

अल्मोड़ा भारतीय राज्य उत्तराखण्ड का एक महत्वपूर्ण नगर है। यह अल्मोड़ा जिले का मुख्यालय भी है। अल्मोड़ा दिल्ली से 364  किलोमीटर और देहरादून से 415  किलोमीटर की दूरी पर हैं। 

Related image