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जय चितई गोलू देवता मंदिर का इतिहास और मान्यताये ,अल्मोड़ा ....
जिला मुख्यालय अल्मोड़ा से आठ किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ हाईवे पर न्याय के देवता कहे जाने वाले गोलू देवता का मंदिर स्थित है, इसे चितई ग्वेल भी कहा जाता है | सड़क से चंद कदमों की दूरी पर ही एक ऊंचे तप्पड़ में गोलू देवता का भव्य मंदिर बना हुआ है। मंदिर के अन्दर घोड़े में सवार और धनुष बाण लिए गोलू देवता की प्रतिमा है।
उत्तराखंड के देव-दरबार महज देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना, वरदान के लिए ही नहीं अपितु न्याय के लिए भी जाने जाते हैं | यह मंदिर कुमाऊं क्षेत्र के पौराणिक भगवान और शिव के अवतार गोलू देवता को समिर्पत है ।
मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण चंद वंश के एक सेनापति ने 12वीं शताब्दी में करवाया था।.
एक अन्य कहानी के मुताबिक गोलू देवता चंद राजा, बाज बहादुर ( 1638-1678 ) की सेना के एक जनरल थे और किसी युद्ध में वीरता प्रदर्शित करते हुए उनकी मृत्यु हो गई थी। उनके सम्मान में ही अल्मोड़ा में चितई मंदिर की स्थापना की गई।पहाड़ी पर बसा यह मंदिर चीड़ और मिमोसा के घने जंगलों से घिरा हुआ है। हर साल भारी संख्या में श्रद्धालु यहां पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं।
और फ्रेंड्स एक दिलचस्प बात.
लोगों को मंदिरों में जाकर अपनी मुरादें मांगते देखा होगा | लेकिन उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित गोलू देवता के मंदिर में केवल चिट्ठी भेजने से ही मुराद पूरी हो जाती है। मूल मंदिर के निर्माण के संबंध में हालांकि कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं | परन्तु पुजारियों के अनुसार 19वीं सदी के पहले दशक में इसका निर्माण हुआ था।
इतना ही नहीं गोलू देवता लोगों को तुरंत न्याय दिलाने के लिए भी प्रसिद्ध हैं। इस कारण गोलू देवता को “न्याय का देवता” भी कहा जाता है।
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